महाभारत – भीम कितने शक्तिशाली थे | भीम का जीवन परिचय

भीम महाभारत काल के एक शक्तिशाली योद्धा थे एक योद्धा के रूप में उन्होंने अविश्वसनीय पराक्रम दिखाया था जो उनके बल, सूरता और साहस का प्रमाण देते हैं। भीम वायु देव के पुत्र थे जिस कारण व प्राकृतिक रूप से ही बलशाली थे पर उनके जीवन में कई घटनाएं भी घटी जिनसे उनकी शक्ति और भी बढ़ गई आइए जानते हैं महाबली भीम से जुड़े रहस्यों के बारे में और साथ में महाभारत काल में उनके द्वारा दिखाए गए पराक्रम को भी विस्तार से जानेंगे। 

भीम का जन्म कब और कैसे हुआ?

भीम और दुर्योधन का जन्म एक ही दिन हुआ था महाभारत के आदि पर्व अध्याय 122 के अनुसार जब कुंती ने दूसरे पुत्र की अभिलाषा से वायु देव का आह्वान किया तब वायु देव वहां प्रकट हुए और बोले तुम्हारे मन में जो भी  अभिलाषा हो कहो।  

तब कुंती ने कहा सुर श्रेष्ठ मुझे एक ऐसा पुत्र दीजिए जो महाबली और विशालकाय होने के साथ-साथ ही सब के घमंड को चूर करने वाला हो। वायु देव के आशीर्वाद से ही महाबाहु भीम का जन्म हुआ। उस महाबली पुत्र को लक्ष्य करके आकाशवाणी ने कहा यह कुमार समस्त बलवानो में श्रेष्ठ है। 

भीमसेन के जन्म लेते ही एक अद्भुत घटना हुई कुंती एक बाघ के भय से सहसा उछल पड़ी थी उस समय उसे इस बात का ध्यान नहीं रहा कि मेरी गोदी में भीमसेन सोया हुआ है। उतारने में वह वज्र के समान शरीर वाला कुमार पर्वत के शिखर पर गिर पड़ा। अपनी मां की गोद से गिरने पर उन्होंने अपने अंगों से पर्वत की चट्टान को चूर चूर कर दिया था पर बालक भीम को कुछ नहीं हुआ था। 

भीम को कई अन्य नाम से भी जाना जाता था जैसे – भीमसेन, वृकोदर, जरासन्धजीत, कीचकजीन, हिडिम्बजीत। 

भीम का जीवन परिचय | भीम कितने शक्तिशाली थे - महाभारत

भीम की हत्या के प्रयास

जब राजा पांडु की शौक के चलते मृत्यु हो गई तब कुंती अपने पांचों पुत्रों को लेकर हस्तिनापुर चली गई। हस्तिनापुर में कौरव और पांडव भाई सब एक साथ ही खेला करते थे। अपने बल के कारण वे समस्त गौरव भाइयों को बड़ा  सताते थे परंतु उनके मन में कौरवों के प्रति द्वेष नहीं था। वे बाल स्वभाव के कारण ही वैसा करते थे। 

तब धृतराष्ट्र का पुत्र दुर्योधन यह जानकर कि भीमसेन में अत्यंत विख्यात बल है उनके प्रति दुष्ट भाव प्रदर्शित करने लगे। उसके मन में पाप पूर्ण विचार भर गए थे। वह अपने भाइयों के साथ विचार करने लगा कि यह मध्यम पांडू पुत्र कुंती नंदन भीम बलवान में सबसे बढ़कर है। इसे धोखा देकर कैद कर लेना चाहिए। 

भीमसेन अकेला ही हम सब लोगों से होड़ बद लेता है इसीलिए नगर उद्यान में जब वह सो जाए तब उसे उठाकर हम लोग गंगा जी में फेंक दें भीम सेन को मार डालने की इच्छा से उनके भोजन में कालकूट नामक विष डलवा दिया। 

वे सगे भाई और हितैसी के भाति स्वयं भीमसेन के लिए भांति भांति के भक्षय पदार्थ परोसने लगा। भीमसेन भोजन के दोष से अपरिचित थे अतः दुर्योधन ने जितना परोसा वे सब खा  गए। भोजन के पश्चात पांडव तथा धृतराष्ट्र के पुत्र सभी प्रसन्न चित्त हो सभी एक साथ जल क्रीड़ा करने लगे।  भीमसेन उस समय अधिक परिश्रम करने के कारण बहुत थक गए थे और वहीं  एक स्थान में सो गए। उनके अंग अंग में विष का प्रभाव फैल रहा था तब दुर्योधन ने गंगा जी के ऊंचे तट से उन्हें जल में ढकेल दिया। 

भीम में कैसे आया इतना बल 

भीम बेहोशी की दशा में ही जल के भीतर डूब कर  नाग लोक में जा पहुंचे। वहां बहुत से महा विषधर नागो ने मिलकर भीमसेन को खूब डसा उनके द्वारा डसे जाने से कालकूट विष का प्रभाव नष्ट हो गया। तत्पश्चात कुंती नंदन भीम जाग उठे उन्होंने अपने सारे बंधनों को तोड़कर उन सभी सर्पो को  पकड़-पकड़ कर दे मारा। वे सभी सर्प भय के मारे नागराज वासुकी के पास जा पहुंचे और सारा वृत्तांत कह सुनाया। 

तब वासुकी ने उन नागो के साथ आकर भीमसेन को देखा उसी समय नागराज आरक ने भी उन्हें देखा जो की कुंती के पिता शूरसेन के नाना भी थे।

भीम मे कितने हाथियो का बल था?

नागराज वासुकी भी भीमसेन पर बहुत प्रसन्न हुए और बोले इन्हे धन, सोना, और रत्नो की राशि भेंट की जाए आर्यक नाग ने वासुकि से कहा महाराज ये धन राशी ले कर ये क्या करेगा राज कुमार को आपकी आज्ञा से उस कुंड का रस पीना चाहिए जिससे एक हजार हाथियों का बल प्राप्त होता है तत्पश्चात भीम बैठ कर कुंड का रस पीने लगे। 

वे एक ही सांस में एक कुंड का रस पी जाते थे। इस प्रकार उन्होंने 8 कुंडो का रस पी लिया। 

भीम के अस्त्र शस्त्र 

भीम की गदा दुर्योधन की गदा से डेढ़ गुना अधिक भारी थी। वह गदा एक समय राजा वृषपर्वा के पास थी उन्होंने युद्ध में शत्रु का संहार कर उस गदा को बिंदु झील में रख दिया था। मयासुर ने कहा था कि वह गदा अकेली ही 100000 गदाओ के बराबर है। 

तब श्रीकृष्ण के निर्देश से मयासुर उस गदा को लेने बिंदु झील पर गए थे जो वहां न जाने कितनी ही पीड़ीओ से पड़ी थी। श्री कृष्ण ने वह गदा मयासुर से लेकर भीम को प्रदान की थी। 

वायु देव से भीम को एक दिव्य धनुष प्राप्त हुआ था जिसका नाम व्याव्य था।

दुर्योधन और दुशासन को छोड़कर बाकी सभी भाइयों का वध उन्होंने अपनी उत्कृष्ट दनुर्ता के बल पर किया था फिर भी उन्हें केवल एक गदा चालक के रूप में ही दर्शाया गया वे गजब के दनुर्धर भी थे।

भीम की पत्नि और पुत्र 

पांडवों में सर्वप्रथम भीम का ही विवाह हुआ था उन्होंने हिडिम्बी नाम की राक्षसी से विवाह किया था।

घटोत्कच इन्हीं दोनों के पुत्र थे। भीम ने काशी की राजकुमारी वालंधरा से भी विवाह किया था जिनसे उन्हें एक पुत्र की प्राप्ति हुई थी उसका नाम सर्वघ था। 

द्रौपदी से भी उन्हें एक पुत्र की प्राप्ति हुई थी जिसका नाम सुतसोम था।  

भीम कितने शक्तिशाली थे?

चलिए अब बात करते हैं भीम के पराक्रम एवं उनके द्वारा लड़े गए युद्धो के बारे में। 

जब गुरु द्रोणाचार्य ने गुरु दक्षिणा स्वरूप द्रुपद को बंदी बनाकर लाने के लिए कहा था तो सर्वप्रथम भीम ही अकेले द्रुपद की विशाल सेना पर झपट पड़े थे। तब सभी पांडवों ने यहां तक कि अर्जुन ने भी भीम द्वारा बनाए गए मार्ग का ही अनुसरण किया था। 

लाक्षागृह से बचकर निकलते समय भीम ने अपने चारों भाइयों तथा माता कुंती को उठा रखा था और सुरक्षित वहां से बाहर निकाल लाए थे। 

भीम ने हिडिंब सुर, बकासुर, मणी मन, जटासुर, किर्मीर आदि और भी कितनी राक्षसों का वध किया था। जब द्रोपदी ने कीचक द्वारा किए गए आमर्यादा पूर्वक व्यवहार के बारे में भीम को बताया था तब पहले तो भी भावुक हो गए थे। 

फिर बाद में वह बहुत क्रोधित हुए और भीम ने शक्तिशाली कीचक का वध बड़ी क्रूरता से किया था। कीचक की एक एक हड्डी को पीस डाला था।  कीचक का शव मांस के गोले के समान प्रतीत होता था। 

युधिष्ठिर के राजसूय यज्ञ में भीम ने पूर्व दिशा के समस्त राज्यो पर विजय प्राप्त की थी। भीम गजब के गदा युद्ध तो थे ही इसके साथ-साथ वह एक उत्कृष्ट दनुर्धार भी थे। वे धनुर्विद्या के 4 रूपों को जानते थे वन पर्व के अनुसार उन्होंने 5 वर्ष तक निरंतर शिकार करते हुए इसका अभ्यास किया था। 

भीम ने कुबेर की यक्षी सेना को गंधमादन पर्वत पर पराजित किया था। 

गंधमादन पर्वत में ही उनकी भेट हनुमान जी से हुई थी। वही हनुमान जी से भीम ने चारों युगो सत्य, त्रेता, द्वापर, और कलि के आचरण के बारे में ज्ञान अर्जित किया था। 

माता कुंती एवं बलराम जी ने स्वयं कहा था कि उस समय भीम से अधिक बलशाली योद्धा कोई ना था। भीम ने 14 दिन तक शक्तिशाली जरासंध के साथ मलयुद्ध करके उसे पराजित कर उसका वध किया था। 

श्री कृष्ण युद्ध से पहले भीम से कहा था उतना ही बल उपयोग करना जितनी शक्ति जरासंध दिखाएं और उन्हें अपने वास्तविक अलौकिक बल का उपयोग करने से मना कर दिया था। 

द्यूत सभा में अपना सब कुछ गवा देने पर जब युधिष्ठिर द्रौपदी को दांव पर लगा बैठे उस समय भीम युधिष्ठिर के हाथ जला देना चाहते थे और वहीं उन्होंने दुर्योधन तथा दूशासन को मार डालने की प्रतिज्ञा की थी। 

गंधर्वो के साथ युद्ध में अर्जुन का साथ देते हुए स्वयं भी भारी संख्या में गंधर्वो का संघार कर डाला था।

महाभारत युद्ध में भीम की भूमिका (Bheem in Mahabharat)

अब बात करते हैं कुरुक्षेत्र युद्ध में भीम द्वारा दिखाए गए प्रचंड पराक्रम की। 

भीम ने अकेले ही कौरव पक्ष से लड़ने आई कई राज्यों की सेनाओं का विध्वंस कर डाला था जिनमें प्रमुख थी कलिंग और दक्षिण भारत के कई राज्यों की सेनाएं और इन सेनाओं की अगुवाई कर रहे कई शक्तिशाली योद्धा भी भीम के हाथों मारे गए थे। 

धृतराष्ट्र के लगभग सभी पुत्रों की मृत्यु भीम के हाथों ही हुई थी।

कुरुक्षेत्र युद्ध में कौरव सेना के सभी प्रमुख योद्धा भीम के हाथों पराजित हुए थे जैसे कि भीष्म, द्रोण, कर्ण, शैल्य आदि। 

कुरुक्षेत्र युद्ध के चौदहवे दिन भीम ने कर्ण को एक से अधिक बार पराजित किया था सिर्फ उसी दिन दुर्योधन के 31 भाई भीम के हाथों मारे गए थे। वे सभी करण की रक्षा के लिए वहां आ रहे थे पर स्वयं मारे गए। 

इसी दिन उन्होंने आलम बुश नामक राक्षस को भी पराजित किया था। 

भीम युद्ध के सत्रहवें दिन भी भीम ने कर्ण को एक से ज्यादा बार पराजित करने में सफल रहे थे जबकि उस दिन कर्ण ने अपने शब्दों के अनुसार विजय धनुष धारण कर रखा था उसी दिन भीम ने कर्ण के सामने ही उसके पुत्र भानुसेन का वध कर डाला था परन्तु अंत में फिर कर्ण ही विजयी हुए थे। 

भीम ने तलवार से दुशासन के दोनों हाथ काट दिए थे फिर द्रौपदी के चीरहरण का बदला लेने के लिए उन्होने दुःशासन की छाती फाड़ कर उसका रक्त पान किया और फिर उसी तलवार से उसकी गर्दन काट डाली थी।

bhima vs duryodhan, bheema vs dushasan | महाभारत युद्ध में भीम की भूमिका

युद्ध के ग्यारवे दिन शल्य को भी गदा युद्ध में पराजित किया था। कुरुक्षेत्र युद्ध के चौदहवे दिन को हुए भीषण युद्ध में उन्होंने अकेले ही एक अक्षौहणी सेना का वध कर दिया था। और 18वें दिन भी उन्होंने संपूर्ण एक अक्षौहणी सेना का वध किया था। कुल मिलाकर भीम ने कुरुक्षेत्र युद्ध में 3 से अधिक अक्षौहणी सेना नष्ट थी।   

युद्ध के 15वें दिन वे भीम ही थे जो अश्वत्थामा द्वारा चलाए गए नारायणआस्त के आगे नतमस्तक नहीं हुए थे। 

कुरुक्षेत्र युद्ध में या उससे पहले भी कुछ क्षण एसे भी आये थे जब उन्हें कुछ समय के लिए पीछे हटना पड़ा था जैसे कि भगदत और उनके शक्तिशाली हाथी के साथ युद्ध में और जब नहुष नामक शक्तिशाली नाग ने उन्हें जकड़ लिया था। हालांकि वे नाग पहले के इंद्र ही थे तब युधिष्ठिर को उनके प्रश्नों का उत्तर देकर भीम को छुड़वाना पड़ा था। 

एक भीषण गदा युद्ध में उन्होंने दुर्योधन को पराजित कर उसका वध किया था जिसके साथ ही कुरुक्षेत्र युद्ध का अंत हुआ था। 

तो यही समाप्त होती है यह जानकारी की भीम का जन्म कब और कैसे हुआ, भीम में कैसे आया इतना बल, किसने किया भीम की हत्या के प्रयास, भीम के अस्त्र शस्त्र, वे कितने शक्तिशाली थे और महाभारत युद्ध में भीम की भूमिका। अगर आपको यह जानकारी अच्छी और उपयोगी लगी हो तो इसे अपने मित्रो और प्रियजनों के साथ अवश्य शेयर करे साथ ही हमें भी कमेन्ट के माध्यम से बता सकते है।

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